कोच्चि। मीडिया हो या सरकारी एजेंसियां, नागरिकों के निजी जीवन में बिना वैध कारण झांकने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह टिप्पणी केरल हाईकोर्ट ने एक टीवी चैनल के दो कर्मचारियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की। कोर्ट ने कहा, मीडियाकर्मी सच व न्याय के 'तथाकथित धर्मयुद्ध' या किसी से बदला लेने के बहाने आम नागरिकों के निजता के अधिकार से नहीं टकरा सकते।

जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि यह देखकर हताशा होती है कि कुछ चैनल समाचार दिखाने के बजाए अपने पेशे में अनैतिक व्यवहार करते हुए फूहड़ता दिखा रहे हैं। हो सकता है समाज का एक तबका ऐसी सनसनी और गंदी खबरें देखता हो। ऐसे समाचारों को रोकने की कोई व्यवस्था न होने पर खुद समाचार चैनलों को अपने भीतर झांकना चाहिए। तभी वे देख सकेंगे कि कुछ लोगों की गतिविधियों की वजह से लोकतंत्र के चौथे खंभे में लोगों का विश्वास कैसे कम हो रहा है।

ऑनलाइन चैनल पर एक महिला को अपमानित करती खबर जारी करने के लिए इसके मालिक व एक कर्मचारी पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आईटी अधिनियम और एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत केस दर्ज हुए थे। महिला खुद भी मीडिया चैनल में काम करती थी। उसका आरोप था कि मीडियाकर्मियों ने उसे जबरन नग्न कर वीडियो बनाए। वे इनमें कुछ बदलाव करके राज्य की एक महिला मंत्री के फर्जी वीडियो बनाना चाहते थे। चैनल मालिक की गिरफ्तारी के बाद भी यह अपमानजनक वीडियो समाचारों के रूप में जारी किए गए। आरोपी जानते थे कि महिला अनुसूचित जनजाति से है, इसलिए उन पर अत्याचार निवारण अधिनियम में भी केस दर्ज हुआ।