क्या मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा अफसरों ने..? पीथमपुर पहुंचे यूनियन कार्बाइड के कचरे पर जो जनआक्रोश की आग क्यों भड़की.....
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पीथमपुर पहुंचे यूनियन कार्बाइड के कचरे पर जो जनआक्रोश की आग भड़की, उसमें झुलसी मोहन सरकार को 24 घंटे में ही पीछे हटना पड़ा... इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि ऐसे संवेदनशील मसले पर किस तरह से जिम्मेदार अफसरों ने मीडिया, जनप्रतिनिधियों सहित प्रबुद्ध नागरिकों, विशेषज्ञों के साथ मुख्यमंत्री को भी अंधेरे में रखा.. शायद इन अफसरों को लगा होगा कि दो-चार दिन का हल्ला मीडिया में रहेगा और फिर अदालती आदेशों का हवाला देकर कचरे को जला दिया जाएगा... दरअसल इंदौर में जो बैठक बुलाई और उसमें इस मामले से जुड़े अफसरों ने जो सफाई दी, उससे कोई भी संतुष्ट नहीं हुआ... होना तो यह था कि अफसरों को इस तरह की बैठकें पहले बुलाना थी, जिसमें प्रजेंटेशन के जरिए कचरा जलाने की पूरी प्रक्रिया को समझाया जाता.. भोपाल, इंदौर, धार, पीथमपुर के स्थानीय जनप्रतिनिधि, मीडिया, विशेषज्ञों और प्रबुद्धों से चर्चा करना थी... उसके विपरीत जब रातों रात कचरा भोपाल से वाया इंदौर होते हुए पीथमपुर पहुंचा दिया, तब बैठक बुलाकर जानकारी देने का तमाशा किया गया..बैठक में भी अफसर असहाय नजर आए, क्योंकि सामने से तगड़े हमले बोले गए और उसी से मीडिया की खबरें बनी और विशेषज्ञों , चिकित्सकों की बाइट सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी, जिससे जनता में भी भय फैला कि अगर कचरा जलाया तो इससे कैंसर सहित तमाम गंभीर बीमारियां होंगी... काबिना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भी धन्यवाद दिया जाना चाहिए, जिनकी बदौलत यह बैठक हुई और कई नए तथ्य सामने आए जो अभी तक अफसरों द्वारा उजागर ही नहीं किए थे.. यहां तक कि कैलाश जी को ही बोलना पड़ा कि उनकी भी कई भ्रांतियां दूर हुई..बावजूद इसके अफसर बैठक में पूछे कई सवालों के जवाब नहीं दे पाए... नतीजतन जो तय था वही हुआ... पीथमपुर में बंद के साथ सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन हुए और दो युवाओं ने आत्मदाह के प्रयास किए, जिसके चलते देर रात मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को आपात बैठक बुलाकर अपने पूर्व के ही बयानों का एक तरह से खंडन करते हुए कहना पड़ा कि अदालत के समक्ष वर्तमान परिस्थितियों को रखा जाएगा और तब तक कचरा नहीं जलेगा... इस मामले में शासन और उसके जिम्मेदार अफसरों द्वारा हुई चूक स्पष्ट है...अब जो जानकारी विज्ञापनों और जनसम्पर्क द्वारा जारी समाचारों या बयानों के जरिए दी जा रही है, वह पहले ही दे दी जाती तो इतना बवाल नहीं मचता... यह पूरा मसला मुख्यमंत्री के लिए भी विचार-मंथन का है कि आखिर वे कौन-से तत्व हैं जो इस तरह का रायता फैलाते हैं, जिसे समेटने के लिए फिर पूरी मशीनरी को झोंकते हुए कदम पीछे खींचना पड़ते है और विपक्ष को भी हमलावर होने का मौका मिल जाता है ... फिलहाल तो कचरा गले की हड्डी बन गया है .. जो भोपाल से निकल कर पीथमपुर में डंप रहेगा... यानि आसमां से गिरे और खजूर में अटके .. जैसी अजीब स्थिति हो गई है

न्यूज़ सोर्स : Icn