बगावती तेवर दिखा रहे मंत्री नागरसिंह को भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उलटे पांव बेरंग लौटाया
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लौटकर " नागर " घर को आये
_दिल्ली गए नागर से न राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा मिले, न संगठन के दूसरे नेता, रात को वापस भोपाल लौटे, शीर्ष नेतृत्व नाराज़_
_केवल शिवराज से कर पाए मुलाकात, वीडी पकड़कर दिल्ली से फिर भोपाल ले आये_
_सीएम के साथ हंसते मुस्कुराते फोटो के साथ तेवर हुए ठंडे, बयान के लिए खेद भी जता रहे अब_
_पार्टी से "गले गले" तक फायदा लेने वाले नागर ने पार्टी के "संकटकाल" में तेवर दिखाकर अपने नंम्बर कम किये_
_वो आरएसएस भी हतप्रभ रह गया, जिसने इस आदिवासी नेताजी को वनवासी अंचल में न केवल गढ़ा, बल्कि राजनीतिक रूप से खड़ा भी किया था। ऐसे समय, जब पार्टी दिल्ली में एक एक सांसद का बल जुटाने में जुटी है, तब महज सवा महीने पहले बनी सांसद पत्नी के इस्तीफे की धमकी ने सबको एक साथ रुष्ट कर दिया। दो दशक से भी ज्यादा समय से "सत्त्ता" का "भरपूर आनंद" लेने के बाद भी अपनी पार्टी के साथ " संकटकाल" में ऐसा बर्ताव...ये तो भाजपा की पहचान नही। इसलिए ही दिल्ली तक खनन से लेकर लिंकर व टिम्बर लॉबी तक के साथ नेताजी के " कारोबारी रिश्ते" गूंज उठे। आवाज " दिल्ली दरबार" तक भी पहुँच गई। दरबार के दरवाज़े फटाक से बंद हो गए। खटखटाने पर भी नही खुले ओर नेताजी देश की राजधानी से "लौटकर बुद्धू" की तर्ज पर फिर प्रदेश की राजधानी में न केवल लौट आये बल्कि अब खुलकर " दांत भी दिखा रहे हैं। उन्ही नेताओ के साथ, जिनसे रूठे थे। ये सब कारस्तानी उन नेताजी की है जिन्हें पार्टी ने नीचे से लेकर ऊपर तक " भरपल्ले" दिया। फिर चाहे वो पद हो या मद...!! वो ही मद अभी बोल पड़ा था।अब बोलती बंद है।_*
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(नितिनमोहन शर्मा)
"लौटकर बुद्धू घर को आये" कहावत की तर्ज पर प्रदेश भाजपा पर मंडराया बगावत का खतरा टल गया। वे नागर सिंह चौहान के बगावती तेवर ठंडे पड़ गए, जो स्वयम इस्तीफा देने के साथ साथ ताजा ताजा सांसद बनी पत्नी से भी इस्तीफा दिलवा रहे थे। अब वे फिर से सत्ता और सँगठन के शीर्ष नेतृव के साथ मंगलवार को भोपाल में देर रात मुस्कुरातें नजर आए। वह भी उसी सीएम के समक्ष सीएम हाउस में, जिनकी शिकायत लेकर दिल्ली गए थे। दिल्ली ने उन्हें बेरंग लौटा दिया। न उनसे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मिले न संगठन का कोई दूसरे नेताओ ने उन्हें कोई तवज्जों दी। प्रदेश की राजनीति में उनके खेवनहार रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराजसिंह चौहान के घर ही उनको शरण मिली। वे सिर्फ चौहान से ही मिल पाए।
प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ मंगलवार को "उलटे पांव" नागर सिंह चोहान देश की राजधानी से प्रदेश की राजधानी लौट आये। सूत्र बताते है कि इस पूरी कसरत से चौहान अपना बड़ा नुकसान कर बैठे। सांसद पद से पत्नी का भी इस्तीफा देने वाली बात ने " दिल्ली दरबार" का गुस्सा बड़ा दिया है। ऐसे समय मे, जब पार्टी के लिए एक एक सांसद जरूरी है, तब पार्टी का वो नेता इस्तीफे की बात कर रहा है जिसे पार्टी ने " गले गले" तक भरकर दिया और जिसके लिए हालिया चुनाव में पार्टी ने अपने " परिवारवाद" के कड़े नियम को दरकिनार कर एक ही घर मे दो टिकट दिए।
कभी वनवासी कल्याण आश्रम के एकल विद्यालय से जुड़े नागर सिंह ने प्रदेश सरकार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाकर सबको चौका दिया। मसला उनके महकमे वाला मंत्रालय, कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत को दे दिया गया। " जंगलराज" से मोह के चलते नागर इससे गुस्से में आ गए और वे उस लाइन पर चल पड़े, जिस पर भाजपा में फ़िलहाल कोई चलना नही चाहता। सबको समझ आ रहा है कि किस तरह बाहर से आये नेता पार्टी के पुराने नेताओ का हक खत्म कर रहे हैं। समझदार नेता इस पर चुप है लेकिन नागरसिंह " सिखाये पूत कचहरी चढ़ जा" की तर्ज पर इस मूददे पर मैदान में आ गए और स्वयं के मंत्री पद से इस्तीफे के साथ सांसद पत्नी अनिता सिंह से भी इस्तीफ़ा दिलाने की धमकी दे गुज़रे।*
साथ ही ये चेतावनी भी कि में दिल्ली जाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष व शीर्ष नेतृव से शिकायत करूँगा। उनकी इस हरकत से समूची प्रदेश भाजपा सन्न रह गई। दिल्ली तक सत्ता व संगठन को नीचा देखना पड़ा। मामला आदिवासी नेता से जुड़ा होने के कारण इस पूरे प्रकरण को गम्भीरता से भी लिया गया लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृव ने चौहान को उनकी हद दिखा दी और उन्हें दिल्ली से बेरंग लौटना पड़ा। अब चौहान अपने तेवर व बयानों को लेकर खेद भी जता रहे है और उसी सत्ता व संगठन के साथ बैठकर कृतिम खिलखिलाहट भी पेश कर रहे है जिससे वे रुष्ट होकर दिल्ली गए थे।
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" संकटकाल" में हुई चोहान की " पहचान"
नागर सिंह चौहान को कभी आरएसएस का नजदीक भी माना जाता था। उनका राजनीति कद संघ ने ही गढ़ा व खड़ा किया था। पार्टी उन्हें 5 बार विधायक का टिकट दे चुकी है। पत्नी अलीराजपुर में नगर पालिका की अध्यक्ष व बाद में जिला पंचायत की अध्यक्ष भी है। इसके साथ ही पार्टी में अपनी तय नीति को दरकिनार कर चोहान की पत्नी को अभी हालिया लोकसभा चुनाव भी लड़ाया। वे जीत भी गई। स्वयम नागर सिंह प्रदेश सरकार में मंत्री है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह से भी नागरसिंह को खूब तव्वजो मिली। वे एक तरह से झाबुआ, मेघनगर व अलीराजपुर जिले के सुप्रीमो ही हो गए।
बावजूद इसके उन्होंने भाजपा के खिलाफ ऐसे समय कड़े तेवर अपनाए जब पार्टी को अपने एक एक सांसद की जबरदस्त जरूरत हैं। बात चोहान के इस्तीफे तक रहती तो फिर भी बात बन जाती चोहान की लेकिन उन्होंने पत्नी के इस्तीफे की बात कर " दिल्ली दरबार" की भृकुटियों को तनवा दिया। इसी कारण उनके प्रिय कृषि मंत्री भी उनकी मदद नही कर पाए। वे स्वयम इस "पराए हवन" हाथ झुलसाना नही चाहते। अभी अभी तो उनकी दिल्ली की पारी का " बोनिबट्टा" भी ढंग से नही हुआ। ऐसे में मंत्री महोदय " प्रदेश सरकार को अस्थिर" करने के जबरन का जंजाल अपने सिर क्यो लेते। उन्होंने ही समझाबुझाकर नागरसिंह को रवाना कर दिया।
भाजपा में फैली चौहान के प्रति नाराज़गी
पार्टी का एक बड़ा धड़ा तो इस बात का पक्षधर हो चला था कि चोहान से इस्तीफ़ा ले ही लेना चाहिएं। इस धड़े में ज्यादातर नेता वे थे जो आदिवासी राजनीति का बड़ा चेहरा है लेकिन पार्टी बार बार नागरसिंह को ही उपकृत कर इन नेताओं को हाशिये पर रखे है। नेताओ ने तो आदिवासी वर्ग से मंत्री पद के नाम तक आगे कर दिए। इसके अलावा एक " अलीराजपुर फ़ाइल" के भी चर्चे गूंजने लगे कि ये फ़ाइल दिल्ली पहुँच गई है जिसमे चोहान की राजनीति नही "कार्यनीति" का विस्तार से जिक्र है। वह भी तथ्य के साथ। इसमे प्रदेश के सबसे विवादित खनन कारोबारी से लेकर लिंकर, टिम्बर लॉबी तक की बातें शामिल है।
विवादित खनन कारोबारी अभी भी सत्ता के गलियारों में मौजूद है और उसका प्रिय कार्यक्षेत्र वो ही मेघनगर, झबुआ और अलीराजपुर वाला वो ही इलाका रहा है जहा के नागरसिंह क्षत्रप हैं। विरोधियों ने मौके का तुरंत लाभ लिया ओर दिल्ली दरबार तक वे सब बातें पहुँचना शुरू कर दिया जिससे व अब तक अनभिज्ञ थी। पार्टी में इस बात की भी नाराज़गी रही कि चोहान ने प्रधानमंत्री मोदी का सवा महीने भी मान नही रखा और सांसद पत्नी से इस्तीफा दिलवाने निकल पड़े। जबकि प्रधानमंत्री मोदी विशेष तौर पर रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर सभा करने आये थे। मोदी की सभा के बाद ही बाजी पलटी और पत्नी सांसद बन पाई।