न्यूयॉर्क । अमेरिका के बैंकिंग सिस्टम में 2022 के अंत तक 51 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है। अमेरिका के नियमों के अनुसार अधिकतर बैंकों को बांड के मूल्य का हिसाब मैच्योर होने तक नहीं रखना पड़ता है। बैंकों को बाजार में ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध अपने सभी ब्रांड के मूल निवेश की जानकारी देनी होती है। 
एसबीवी को अब जाकर इसका एहसास हुआ है। जब कोई बैंक डूबता है, तब उसे अपने बांड बेचना पड़ते हैं। शेयर बाजार में शेयर की कीमत गिरने के बाद बांड पर उसका असर होता है। बैंकिंग की भाषा में इसे अनरिकगनाइज लॉसेस के रूप में जाना जाता है। 


निवेशक भयभीत
2007 से 2009 के बीच ग्लोबल वित्तीय संकट ने बैंकों की खामियों को सही कर दिया होगा, ऐसा माना जाता था। 9 मार्च को सिलीकान वैली बैंक (एसवीबी) से जब एक दिन में 3। 46 लाख करोड़ रुपए निकाल लिए गए। उसके बाद ही इस बैंक के डूबने की स्थिति बनी। अमेरिका के 3 बैंकों में से यह 1 बैंक है। 3 बैंकों के एक साथ डूबने की हालत के कारण अमेरिकी निवेशकों में भारी भय देखा जा रहा है। 
अमेरिकी बैंकों को 18 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। यूरोप जापान में भी बैंकों के शेयरों को काफी नुकसान पहुंचा है। क्रेडिट स्विस बैंक के शेयर 24 फ़ीसदी नीचे आ गए हैं। अमेरिका में, लोग यह पूछ रहे हैं, कि 14 साल के बाद भी अमेरिका के बैंकों ने वित्तीय संकट से निपटने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए। जिसके कारण बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिसके कारण बैंक दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं। 
2007 से 2009 के बीच में अमेरिका में इसी तरीके का अंधाधुंध कर्ज दिया गया था। उसके बाद जोखिम सीमित रखने के लिए नियम बनाए गए थे। बैंकों को सरकारी बांड खरीदने के लिए बढ़ावा दिया गया था। पिछले वर्षों में बैंक का ब्याज कम होने के कारण बैंकों ने बड़ी मात्रा में प्राइवेट बांड में निवेश किया। जिसके कारण अमेरिका के बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 
अमेरिकी कानून के अनुसार बॉन्ड का मूल्यांकन मैच्योर होने के समय ही होता है। जिसके कारण जोखिम का पता नहीं लगता है। जब बैंकों के ऊपर संकट आता है, तब वास्तविक जमाकर्ता अपना पैसा निकालकर बैंक से भागने लगते हैं। जिसके कारण बैंकों को भारी नुकसान होता है। बैंकों को अपनी संपत्ति बेचकर अपने आपको बचाने का दबाव बनता है। 
अमेरिका में जिस तरीके की अफरा-तफरी का माहौल बना है। अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से शेयर के दाम लगातार गिर रहे हैं। उसका असर अब बैंकों पर सीधा पड़ रहा है। जिसके कारण निवेशक भयभीत होकर अपना जमा निवेश निकाल रहे हैं।