सावधान, रायसेन अस्पताल में केंसर की कीमो थैरेपी इंजेक्शन के अलावा नहीं हैं कोई दवाइयां
कोरोना से अधिक खतरा केंसर का,रायसेन जिले में हर साल 150 से अधिक नए मरीज ज्यादा, 
India city news.com
रायसेन जिले में केंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते दो सालों से कोरोना के चलते केंसर के खतरे को लोगों ने नजरअंदाज कर दिया है।लेकिन यह जानलेवा बीमारी कोरोना से कहीं अधिक खतरा बन रही है। हाल ही में लगाए गए स्क्रीनिंग केंप में 50 संदिग्ध मरीजों की जांच की गई। जिनमें केंसर के छह मरीज यानि 12 प्रतिशत मरीज पाए गए। यह संख्या पढऩे में भले ही कम लगे। लेकिन बीमारी जितनी खतरनॉक है। उस लिहाज से यह संख्या खतरे का संकेत जरूर दे रही है। खास बात यह भी कि इन छह मरीजों में चार ओरल केंसर यानि मुंह का केंसर के मरीज हैं।जबकि दो मरीज ब्रेस्ट केंसर के और एक अन्य अन्य तरह के केंसर का मरीजा पाया गया। इससे स्पष्ट है कि जिले में तंबाकू का सेवन करने वाले केंसर का शिकार बन रहे हैं। यह एक दिन के शिविर और कुल 50 संदिग्ध लोगों के बीच का निष्कर्ष है। जबकि यदि जिले में सघन स्क्रीनिंग की जाए तो यह संख्या कई गुना बढ़ सकती है। बिना किसी केंप या स्क्रीनिंग के हर साल नए केंसर मरीजों की संख्या 150 से अधिक रहती है।
जिला अस्पताल में केंसर मरीजों की कीमोथैरेपी की सुविधा है लेकिन इसके लिए जरूरी दवाएं नहीं हैं। केंसर के नोडल डॉ. रजनीश सिंघई ने बताया कि कीमो थैरेपी के लिए जो इंजेक्शन दिया जाता है। केवल वही हम दे पाते हैं। इसके अलावा लगने वाली 5-7 तरह की दवाएं नहीं है। इसलिए मजबूरी में मरीज बड़े शहर में जाकर इलाज कराते हैं। अस्पताल में मरीजों की जांच के लिए आधुनिक लैब तो है। लेकिन केंसर जांच के लिए बायोप्सी की सुविधा नहीं है। दवाएं और बायोप्सी की सुविधा मिल जाए तो जिला अस्पताल में केंसर का पूरा इलाज मिल सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा खतरा
जिले के ग्रामीणक्षेत्रों में केंसर के मरीज अधिक पाए जाते हैं। यह धीमे जहर की तरह गांवों में पैर जमा चुका है। जहां जागरुकता की बेहद कमी है। केंसर से बचाव के लिए जमीनी स्तर पर कोई जागरुकता कार्यक्रम और योजना नही है। केंसर दिवस पर भी स्क्रीनिंग केंप का आयोजन की कोई जानकारी आम जन नहीं होती है। इसके लिए विकासखंडों से कुछ संदिग्धों को जांच के लिए भेजा जाता है।
कोरोना से अधिक खतरनॉक इसलिए
कोरोना महामारी की आपाधापी में जानलेवा केंसर पीछे छूट गया है।लेकिन यह कोरोना से कहीं अधिक खतरनॉक है। कोरोना मरीजों की मृत्यु का प्रतिशत दो के आस-पास है। रायसेन जिले में तो यह प्रतिशत 1.6 है।जबकि केंसर से मृत्यु का प्रतिशत 90 के आसपास है। कोरोना पीडि़त व्यक्ति एक सप्ताह में पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।सामान्य स्थिति में इलाज पर कोई विशेष खर्च भी नहीं है। जबकि केंसर के मरीज को महंगे इलाज के बाद भी स्वस्थ होने में सालों लग जाते हैं।
डा. रजनीश सिंघई, जिला नोडल अधिकारी केंसर का कहना है कि फिलहाल कोरोना के चलते केंसर जिले में दूसरे नंबर पर चला गया है।लेकिन कोरोना खत्म होते ही यह फिर एक नंबर होगा। जिले में बड़ी संख्या में केंसर के मरीज हैं। लगभग डेढ़ सौ मरीज हर साल पहचाने जाते हैं। जिला अस्पताल में कीमो किया जा सकता है। लेकिन जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।

न्यूज़ सोर्स : Hospital source