प्राचीन मां हिंगलाज दुर्गा मठ पर चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत के पांचवें दिन कथा वाचक श्री शिवराज कृष्ण शास्त्री जी द्वारा कंस बद्ध ओर गोवर्धन पूजा गोवर्धन पर्वत पर लगाये गए 56 प्रकार के भोग
(साँचेत से सतीश मैथिल की रिपोर्ट)
Indiacitynews.com
सांचेत कस्बा सांचेत में प्राचीन मां हिंगलाज मंदिर दुर्गा मठ में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन रविवार को कथावाचक श्री शिवराज कृष्ण शास्त्री ने कंस वध और गोवर्धन पूजा का वर्णन सुनाया श्रीमद् भागवत कथा में 56 भोग लगाकर की गोवर्धन पूजन श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कथा व्यास पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री ने गोवर्धन पूजन के साथ गोवर्धन के संबंध में अपनी बात रखते हुए कहा कि गोवर्धन पर्वतराज द्रोण के पुत्र है। एक समय दुर्वासामुनि पर्वत द्रोणगिरी गए। वहां उन्होंने गोवर्धन को उनसे मांग लिया। तब गोवर्धन ने कहा कि अगर रास्ते में आपने मुझे रख दिया तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। दुर्वासा मुनि ने गोवर्धन की बात ली और लेकर चल पड़े। बताया जाता है कि ब्रज मंडल पहुंचते ही दुर्वासा मुनि को लघुशंका हुई। जिसकी वजह से उन्होंने गोवर्धन को वहीं रख दिया। जिसके बाद गोवर्धन वहीं पर स्थापित हो गए। कथा व्यास ने बताया कि रामायण काल में भी जब लंका जाने के लिए पुल बनाने की बात हो रही थी तो वीर हनुमान गोवर्धन को उठाकर चले ही थे कि समाचार आया कि पुल बनाने का काम पूरा हो गया है। तब हनुमान जी ने श्रीराम से कहा कि मैने गोवर्धन को आपके दर्शन करवाने का वचन दिया था। तब भगवान बोले कि गोवर्धन से कहो कि मैं उसे कृष्ण अवतार में दर्शन दूंगा। भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को सात दिन तक अपनी छोटी ऊंगली पर धारण करके अपना ही रूप गोवर्धन को दिया था। तभी से भक्त गोवर्धन की पूजा करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते है। कथा व्यास शिवराज कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। वहीं उन्होंने कहा कि हमें भगवान की भक्ति में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। अपने व्यस्त समय में से भगवान को भी समय देकर अराधना करनी चाहिए इसके बाद कथावाचक पंडित शिवराज कृष्ण शास्त्री द्वारा कंस बद्ध की कथा को सुनाया कंस वध की लीला सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। जयकारे की गूंज पूरे पंडाल में गूंजती सुनाई दी। पंडित शास्त्री ने कंस वध की कथा सुनाते हुए कहा कि कंस ने मथुरा में आतंक मचा रखा था। भगवान कृष्ण ने उसका वध कर आतंक से मुक्ति दिलाई। दुष्ट कंस के बुलाने पर श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई दाऊजी के साथ मथुरा पहुंचे। जहां उनके दर्शन के लिए लोग उमड़ पड़े। मल्ल युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया। भगवान श्रीकृष्ण के जयघोष से वातावरण गुंजायमान हो उठा।पंडित शास्त्री ने ऊधो-गोपी संवाद का भी मार्मिक ढंग से वर्णन किया। कहा कि कृष्ण के कहने पर ऊधो गोकुल पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गोपियां श्रीकृष्ण के विरह में डूबी हैं। ऊधो ने गोपियों को समझाया कि श्रीकृष्ण तो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापक हैं। फिर वे उनके विरह में पागल क्यों हो रही हैं। यह सुन गोपियां ऊधो पर बरस पड़ती हैं और कहती हैं कि अपने ज्ञान को अपने पास रखें। हम तो सगुण, साकार कन्हैया के उपासक हैं

न्यूज़ सोर्स : Satish