मां हिंगलाज दुर्गामठ में श्रीमद्भागवत के छठवें दिन हुआ रुकमणी बिवाह का प्रसंग
(साँचेत से सतीश मैथिल की रिपोर्ट )
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रायसेन जिले के सांचेत में प्राचीन मां हिंगलाज दुर्गा मठ पर चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन सोमवार को पंडित श्री शिवराज कृष्ण शास्त्री द्वारा रुकमणी विवाह की कथा को विस्तार पूर्वक सुनाया गया कथा के आयोजक पंडित श्री अरुण कुमार शास्त्री जी है कथा का रसपान करने प्रति दिन सेकड़ो की संख्या में श्रद्धालु पहुच रहे है आयोजक पंडित श्री अरुण कुमार शास्त्री ने बताया कि मंगलवार 8 फरवरी को महाप्रसादी ओर सुदामा चरित्र की कथा के साथ संगीतमय श्रीमद भागवत कथा का समापन किया जाएगा।कथावाचक श्री शिवराज कृष्ण शास्त्री जी द्वारा कथा में वताया गया कि किस प्रकार हुआ श्री कृष्ण और रुकमणी जी का विबाह यूं हुआ श्रीकृष्ण और रुक्मणी का प्रेम, विवाह के लिए करना पड़ा युद्ध
भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह भी दिखाया था कि राधा और श्रीकृष्ण दो नहीं बल्कि एक हैं। लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मणी हुईं। देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी और इसी कहानी से प्रेम की एक नई परंपरा की शुरुआत भी हुई।
ऐसा हुआ देवी रुक्मणी को श्रीकृष्ण से प्रेम
देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणीजी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन इन्होंने सभी को मना कर दिया। इनके विवाह को लेकर माता पिता और भाई रुक्मी चिंतित थे।
यूं कृष्ण की दीवानी हुईं रुक्मिणी
एक बार एक पुरोहित जी द्वारिका से भ्रमण करते हुए विदर्भ आए। विदर्भ में उन्होंने श्रीकृष्ण के रूप गुण और व्यवहार के अद्भुत वर्णन किया। पुरोहित जी अपने साथ श्रीकृष्ण की एक तस्वीर भी लाए थे। देवी रुक्मिणी ने जब तस्वीर को देखा तो वह भवविभोर हो गईं और मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया।
तय हुई शादी तो चुपके से भेजा प्रेम पत्र
लेकिन इनके विवाह में एक कठिनाई यह थी कि इनके पिता और भाई का संबंध जरासंध, कंस और शिशुपाल से था। इस कारण वे श्रीकृष्ण से रुक्मिणी का विवाह नहीं करवाना चाहते थे। राजनीतिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए जब रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से तय कर दिया। रुक्मिणी ने प्रेमपत्र लिखकर ब्राह्मण कन्या सुनन्दा के हाथ श्रीकृष्ण के पास भेज दिया।
प्रेम पत्र पाकर श्रीकृष्ण ने बनाई योजना
श्रीकृष्ण ने भी रुक्मिणी के बारे में काफी कुछ सुन रखा था और वह उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे। जब उन्हें रुक्मिणी का प्रेमपत्र मिला तो प्रेम पत्र पढ़कर श्रीकृष्ण को समझ आया कि रुक्मिणीजी संकट में हैं। उन्हें संकट से निकालने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ मिलकर एक योजना बनाई। जब शिशुपाल बारात लेकर रुक्मिणीजी के द्वार आए तो श्रीकृष्ण ने रुक्मिणीजी का अपहरण कर लिया।
रुक्मिणी के अपहरण के बाद हुआ कुछ ऐसा
रुक्मिणी के अपहरण के बाद श्रीकृष्ण ने अपना शंख बजाया। इसे सुनकर रुक्मी और शिशुपाल हैरान रह गए कि यहां श्रीकृष्ण कैसे आ गए। इसी बीच उन्हें सूचना मिली की श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर लिया है। क्रोधित होकर रुक्मी श्रीकृष्ण का वध करने के लिए उनसे युद्ध करने निकल पड़ा था। रुक्मि और श्रीकृष्ण के मध्य युद्ध हुआ था जिसमें कृष्ण विजयी हुए और रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आ गए।
इस तरह हुआ श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह
द्वारिका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण के विवाह की भव्य तैयारी हुई और विवाह संपन्न हुआ। अगले अंक में पढ़ें चित्रांगदा और अर्जुन की प्रेमकथा। इस प्रेम का हुआ ऐसा अंजाम पांडवों में छा गई शोक की लहर।
क्या है देवी राधा और रुक्मणी का रहस्य
कुछ ऐसी भी कथा है कि देवी रुक्मणी और देवी राधा दो नहीं बल्कि एक ही थीं। बचपन में पूतना इन्हें विदर्भ से चोरी करके आकाश मार्ग से ले जा रही थी तो रास्ते में रुक्मणीजी ने अपना वजन बढ़ाना शुरू कर दिया जिससे घबराकर पूतना इन्हें छोड़कर भाग गई। इन्हें बाल्यकाल में वृषभानुजी ने पाला। बाद में श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद राजा भीष्मक को पता चला कि उनकी पुत्री बरसाने में हैं तो उन्हें अपने साथ ले आए और देवी राधा ही रुक्मणी कहलाने लगीं।