अंडोल में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत के चौथे दिन पहलाद चरित्र और कृष्ण जन्म की कथा को सुनाया /पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना बाले
अंडोल में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत के चौथे दिन पहलाद चरित्र और कृष्ण जन्म की कथा को सुनाया /पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना बाले
India city news.com
(सतीश मैथिल सांचेत)
सांचेत ग्राम अंडोल में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन ईश्वर की भक्ति से खुलता है मोक्ष का मार्ग पंडित प्रियंक कृष्ण शास्त्री
कामना रहित भक्ति ही जीव को परमात्मा का साक्षात्कार करा सकती है। ईश्वर ने सब कुछ देकर ही मनुष्य को भेजा है। जब तक जीवन में कामना रहेगी तब तक वासना रहेगी और जब तक वासना रहेगी तब तक भगवान नहीं मिलते। जब हिरण्यकश्यप वध के पश्चात भक्त प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्ना होकर भगवान नृसिंह ने कुछ मांगने को कहा तो प्रहलाद ने कामना रहित हृदय का आशीर्वाद प्राप्त किया। यदि भक्ति करनी हो तो भक्त प्रहलाद और भक्त ध्रुव की तरह करें तभी भगवान मिलेंगे। ध्रुव और प्रहलाद ईश्वर के प्रति अटल विश्वास और भक्ति, सत्य की प्रतिमूर्ति हैं। उन दोनों ने माया-मोह को छोड़कर मात्र प्रभु के चरणों में जगह मांगी। यह बातें अंडोंल में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन शनिवार को पंडित श्री प्रियंक कृष्ण शास्त्री जी ने कही कथा का आनंद लेने आसपास के ग्रामीण भी पहुंच रहे हैं।
इसके बाद कथावाचक पंडित श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला सौजना बाले गुरुजी द्वारा श्री कृष्ण जन्म की कथा को सुनाया गया
श्री कृष्ण जन्म पर झूम उठे श्रोता
चौथे दिन जड़ भरत, प्रहलाद चरित्र एवं भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा हुई, इस दौरान लोग नंद के आनंद भयो की धुन पर झूम उठे। श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजकों ने पंडाल में गुब्बारे खिलौने, बांसुरी से विशेष साज-सज्जाा की थी, जहां श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला जी द्वारा श्रीकृष्ण जन्म की लीला का मनोहारी वर्णन किया गया। उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित से शुकदेव कहते हैं कि संसार का कल्याण करने के लिए भगवान अवतार लेते हैं तथा जब-जब धर्म की हानि होती है तब तब सज्जानों का कल्याण और राक्षसों का वध करने के लिए भगवान अवतार लेते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने जेल में वासुदेव के यहां अवतार लेकर संतों व भक्तों का सम्मान बढ़ाया।
कथा में श्री ओमप्रकाश जी शुक्ला ने बताया कि भरत ऋषि स्वायंभुव मनु वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। इनके नाम से ही आर्यावर्त का नाम भारत नाम पड़ा। इन्होंने शासन करने के बाद राजपाट पुत्रों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया तथा भगवान की भक्ति में जीवन बिताने लगे। शालग्राम तीर्थ में तप करने के दौरान इन्होंने नदी में बह रहे एक हिरण के बधो की रक्षा की थी। उसी मृग की चिंता करते हुए उनकी मौत हुई थी। इसी कारण इनका अगला जन्म जंबूमार्ग में एक हिरण के रूप में हुआ, लेकिन, इनकी स्मृतियां बनी रहीं। इस कारण हिरण के जन्म में भी ये भगवान के ध्यान में लीन रहते थे। हिरण की मृत्यु के बाद इनका अगला जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्हें अपने पूर्व जन्म की सारी स्मृतियां थीं। अब इन्होंने समझ लिया था कि आसक्ति ही दुःखों का कारण है। इस कारण ये आसक्ति के नाश के लिए प्रयासरत रहते थे। जन्म के साथ ही जड़ की तरह रहने लगे थे। ऐसे ही जड़भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।