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सत्येंद्र जोशी
रायसेन। शहर के दशहरा मैदान में चल रही त्रिपुंड शिव महापुराण कथा के छठवें दिन आज अंतरराष्ट्रीय पंडित श्री प्रदीप मिश्रा जी ने कहा कि भगवान शंकर ने श्री परशुराम से गुरु दक्षिणा में क्रोध का त्याग करने की गुरु दक्षिणा मांगी।
उन्होंने गुरु परशुराम और भगवान शंकर की कथा बहुत ही सुंदर तरीके से कहते हुए कहा कि श्री परशुराम जी ने अपनी माता का सिर काट दिया था। फिर उन्होंने अपनी माता को भगवान से वापस मांग लिया। भगवान के 24 अवतार हुए। उनमें से छठा अवतार भगवान परशुराम है। युद्ध का ज्ञान भगवान शंकर ने परशुराम जी को दिया।
जब सब जगह से हार जाओ तब शिव के चरणों में चले जाओ। वह सब को दे देता है। उन्होंने कहा जिसका कोई गुरु नहीं है और गुरु नहीं बनाया है। चिंता मत करो। जैसे श्री परशुराम जी ने शंकर को गुरु मान लिया था। वैसे ही आप अपने शिव को गुरु मान लो। आप का जीवन सफल हो जाएगा। गुरु जी कहते हैं भगवान प्रेम के भूखे हैं। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं है। समुद्र देव रत्नाकर ने भगवान को रत्न के भंडार दे दिए थे उनके पास रखने की जगह नहीं थी। लक्ष्मी उनके चरणों में पड़ी है। उन्हें किसी रत्न की जरूरत नहीं है। भगवान कहते हैं मुझे वह दो जो मेरे पास नहीं है। जिसके पास जो चीज नहीं है उसे वह चीज दी जाती है। पंडित श्री मिश्रा जी ने कहा भगवान शंकर ने गुरु परशुराम से कहा तुम मुझे दक्षिणा देना चाहते हो, तुम क्रोध का त्याग कर दो। तुम बहुत काटमार करते हो, लोगों पर बहुत गुस्सा करते हो, इसलिए उस क्रोध को त्याग दो। इस पर श्री परशुराम कहते हैं आज से मैं अपने क्रोध का त्याग करता हूं। फरसा, भाला और धनुष मैं आपको देता हूं। भगवान शंकर ने कहा एक काम करो तुम भी मेरे पुत्र समान हो, दो पुत्र और है मेरे मृत्यु लोक में, एक लंका का राजा रावण, और दूसरा जनकपुरी में निवास करने वाले श्री जनक, तुम्हें जो अच्छा लगे उन्हें दे दो। भगवान शंकर कहते हैं, अब तुम्हें क्रोध नहीं करना है अब तुम तप करो साधना करो। श्री परशुराम यहां से सीधे राजा जनक के पास जाते हैं और धनुष श्री जनक जी को देते हैं। भगवान परशुराम ने राजा जनक को आशीर्वाद दिया। और कहा कि तुम्हारे इस दरवाजे पर इस धनुष को छूने के लिए स्वयं राम आएंगे। इसी दरवाजे पर पहुंचेंगे। श्री मिश्रा जी ने कहा कि शंकर का अगर प्रसाद शिव महापुराण की कथा, मेरे शिव का नाम अगर आपके दरवाजे तक पहुंच गया है, शंकर का मूल मंत्र श्री शिवाय नमस्तुभ्यं निश्चित तौर पर समझ लेना कि 1 दिन शिव भी आपके दरवाजे पर पहुंचेंगे। श्री मिश्रा जी ने कहा कि अपने कर्मों का भोग इस शरीर को ही भोगना पड़ेगा। कोई दूसरा नहीं भूगेगा। इसलिए भजन करें, सत्कर्म करें, अच्छे कर्म करें। शिव की कृपा नहीं होती तब तक हम भगवान के मंदिर एक लोटा जल लेकर नहीं जा सकते। यदि हम शिव की कथा में बैठे हुए है, देवा दी देव महादेव की कथा का श्रवण कर रहे हैं, सुन रहे हैं। यह शिव की करुणा है। इतनी चिलचिलाती हुई गर्मी में कथा सुन रहे हैं, दूर-दूर से इस दशहरा मैदान में आना कथा श्रवण करना। यह शंकर के आशीर्वाद के सिवा कोई नहीं कर सकता। यह शिव की कृपा है। भगवान शिव कै शिवाय, इस करुणासागर के सिवाय, अगर हम सोचें कि यह हम करें, यह हमारे बस की बात नहीं है। कथा करवाने वाला वही सोमेश्वर महादेव, सुनने वाला भी सोमेश्वर महादेव और बांचने वाला भी सोमेश्वर महादेव है।

चिलचिलाती धूप को देखकर गुरुजी चिंतित हुए

गुरुजी ने पंडाल से कहा कि जिसको जहां जगह मिले वहां जाकर बैठ जाएं। बहुत तेज धूप है। गुरुजी ने कहा मेरा करबद्ध निवेदन है। जहां छांव देखें आसपास वहां जाकर बैठ जाएं। पांडाल में जगह ना मिले बाहर जाकर बैठ जाएं। लेकिन धूप से बचें। अपना मन भगवान की भक्ति में लगाएं। ‌बड़ी मुश्किल से मानव रूपी शरीर मिला है। यह गवाने गांव के काबिल नहीं है। बड़ी मुश्किल से मानव का शरीर मिला है। इस मानव रूपी शरीर को हम यूं ही गवा दें, ना जाने यह मानव रूपी शरीर फिर मिलेगा कि नहीं मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। एक मुस्कुराने का गुण और वजन करने का गुण भगवान ने केवल मनुष्य को दिए। शिव कथा कहती है जो बच्चा प्रेम और स्नेह से आगे बढ़ता है। वह जीवन में प्रेम स्नेह लुटाता रहता है। इसलिए बच्चों से प्रेम करो और प्रेम से उन्हें आगे बढ़ाओ।

अन्नपूर्णा के रूप में मौजूद है माता पार्वती

शिव महापुराण कथा में गुरुजी ने बताया कि पार्वती जी बोलती हैं मुझे वहां जाना जांच कोई नहीं जाता। मुझे शमशान जाना है। भगवान शंकर कहते हैं मैं शमशान जाता हूं जैसे ही डमरू बजाता हूं, मेरे चाहने वाले कहते हैं पार्टी दो। तुम पार्टी कैसे दोगे तभी पार्वती जी कहती हैं मुझे पहले लेकर तो चलो मैं सबको पार्टी दूंगी। गुरुजी ने कहा सतयुग में, त्रेता युग में, द्वापर तीनों ही युग में एक ही शमशान है, वह शंकर का नंदनवन काशी है। शंकर भगवान ले गए पार्वती जी को काशी शमशान में। पहली बार माता पार्वती काशी पहुंची और जो पार्वती ने श्मशान की रोनक देखी प्रसन्न हो गईं। गुरुजी ने कहा वृंदावन में लोग होली खेलते हैं, वहीं पूरी दुनिया में काशी ऐसी जगह है जहां मुर्दे जलते हैं। यहां होली के दिन अत्याधिक शव आते हैं। उन्हें लोग उठाकर नाचते हैं। उनके साथ होली खेलते हैं। तभी जैसे ही पार्वती जी शमशान में पहुंची सभी पार्टी मांगने लगे। पार्वती जी ने शंकर से कहा मुझे अन्नपूर्णा बनना है। तभी भगवान ने कहा तुम पृथ्वी पर अन्नपूर्णा के रूप में रहोगी तुम्हारे रहते कोई भूखा नहीं सोएगा। इसीलिए कोई सात ताले में भी बंद हो जाए उसे भोजन की व्यवस्था होती है। शिव कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे ऊपर चढ़ी हुई बेलपत्र ही धोकर मुझे चढ़ा दो मैं प्रसन्न हो जाऊंगा। परशुराम भगवान ने बार-बार शंकर से कहा मुझे गुरु दक्षिणा देना है मैं आपको क्या दूं। भगवान शंकर ने कहा मुझे कुछ नहीं चाहिए। परशुराम कहते हैं मुझे देना है, नहीं आपको लेना पड़ेगा। भगवान शंकर ने कहा तुमने मुझसे शिक्षा प्राप्त कर ली मैंने शिक्षा दी इससे बढ़कर मुझे कुछ नहीं चाहिए। श्री मिश्रा जी ने कहा कि शंकर के दरवाजे पर सबकी शान है। वह शमशान है। और श्मशान मैं अमीर, गरीब कैसा भी हो वह बांस की लकड़ी पर ही जाता है। इसलिए भजन करो। मनुष्य हमेशा जिंदगी भर धन कमाई में लगा रहता है। अंत में भगवान के पास ही जाना पड़ता है। इसलिए जितना बने भगवान की भक्ति करते रहे।

शहर के लोगों की और मीडिया की प्रशंसा

शिव महापुराण कथा में आज पंडित श्री मिश्रा जी ने कहां की रायसेन वालों पर शंकर की करुणा है। यहां लोगों के पास व्यापार भले ना हो दिल बहुत बड़ा है। चित, मन, व्यक्तित्व आपका बड़ा प्रबल है। सबके चेहरे पर प्रसन्नता रहती है, और ऐसे ही खुश रहो। कितना भी बड़ा दुःख हो जाए, चेहरे से स्माइल मत जाने देना। भगवान के मंदिर जाना तो खुश होकर ही जाना। ताकि भगवान को भी लगे कि इतनी बड़ी तकलीफ आ गई तब भी मुस्कुरा रहे हैं। भगवान शंकर समझें कि मुझे चिढ़ा रहे हैं, हे प्रभु तुमने दुःख दिया है, तुम ही सुख दोगे। मैं तुम्हारा दरवाजा नहीं छोडूंगा। कथा में बैठे मीडिया की प्रशंसा करते हुए गुरुजी ने कहा कि रायसेन की मीडिया अच्छी है। सभी ने कथा का अच्छे से कवरेज किया है। पल-पल की जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे हैं, शिव कृपा आप पर बनी रहे।

न्यूज़ सोर्स : Icn