(सतीश मैथिल सांचेत)
ग्यारह सौ वर्ष पुरानी प्राचीन बावडी कस्बा सांचेत में प्राचीन  वावड़ी इसकी बुनियात महंत नरहरी गिरी जी महाराज ने वावड़ी का ओर वावड़ी से जुड़ा हुआ हिंगलाज माता मठ इन दोनों जगह का निर्माण किया उस समय आवादी ना होने के कारण बावड़ी का जो दृश्य था जिससे लोग भयाभय होते है इस कारण से बाबड़ी बाले वाग में सूर्य की रोशनी भी कम पड़ती थी इसी कारण कुछ खूंखार जानवरों ने भी विशेष अड्डा जमा लिया था धीरे धीरे जब स्वामी जी ने अपने जीवन का रुकना ओर व्यवस्था को बढ़ाना सब कुछ निश्चित कर लिया था इसके बाद अपने जीवन को यही विताना है और इसके बाद उनके मन मे एक भाव की उपज हुई कि क्यों नही बाबड़ी के समीप में  ही माता हिंगलाज का मठ  का निर्माण किया जिस समय स्वामी नरहरी गिरी जी ने सब कुछ निश्चित कर लिया इसके बाद उन्होंने अपने जीवन चलाने के लिए जल की आवश्यकता पड़ती है मन मे चिन्तन किया और ओर यहा बावड़ी का कार्यक्रम चालू करबा के माता हिंगलाज जी को लेने के लिये स्वयं महंत नरहरि जी महाराज ने यहां पहुंच कर मां हिंगलाज के चरणों मे पहुंच कर विनती की आप मेरे साथ ग्राम सचेत ग्राम में दुर्गा मठ सचेत में विराजमान होना हैं माता ने स्वामी जी से कहा में ज्योति सरुप में ग्राम सांचेत में निवास करूंगी माता जी के आने के बाद बावड़ी में जल आ गया था स्वामी जी जो कह के गए थे वापिस आने पर जल बावड़ी में प्राप्त मिला अतः ऐसी ख्याति को सुनकर गोंडवंश का राजा जिसका नाम रायसिंह था स्वामी जी की कृति को सुनकर राजा ने मन मे विचार किया कि स्वामी जी से मिलना दर्शन करना बहुत जरूरी है प्रयास करने पर राजा थोड़े से अंगरक्षको के सहित स्वामी जी के चरणों मे बावड़ी पर उपस्थित हुए तो उपस्थिति होने के बाद प्रणाम किया और राजा ने अपने ह्रदय के भाबों से दुखी था अपने मन के भाव को किसी से कहना या सुनाना ब्यर्थ समझता था स्वामी जी के चरणों मे प्राथाना की राजा ने की है महाराज मेरे पास राजपाट यतादि सब कुछ होते हुए भी पुत्र ना होने के कारण आत्मा अंदर से बहुत दुखी है स्वामी जी के द्वारा इस तरह की वेदना सुनकर दया की अतः स्वामी जी ने राजा को आशिर्वाद दिया राजा ने कहा कि पुत्र प्राप्ति से पहले मेरे महल का एक एक पत्थर बावड़ी के निर्माण में आज भी मौजूद है  राजा रायसिंह का निवास सचेत से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है महलपुर पाठा राजा ने महल का पत्थर किसी भी प्रकार से बुलबाकर बावड़ी का निर्माण किया।राजा को पुत्र प्राप्ति के बाद सह परिवार ने उनके चरणों मे प्राथाना की विनती की इसके बाद बावड़ी ओर मठ का निर्माण अपने सामने ही किया बावड़ी से लग कर ही स्वामी नरहरि जी की जिंदा समाधि बनी हुई हुई है जिसके दर्शन करने से बहुत सी बाधाओं का अंत होता है मनुष्य जीबन में हसीं ख़ुशी से जीवन वितान इन सब ईश्वर की कृपा भी प्राप्त होती है स्वामी नरहरि गिरी जी के जो शिष्य गण थे साधु के रूप में थे उन सभी ने अपने जीवन को बावड़ी बाले बाग में ग्राम सचेत में उन्होंने अपने जीवन कोबसेवा में समर्पित किया मठ ओर बावड़ी के निर्माण को ग्यारह सो वर्ष हो हो चुके है वर्तमान में उसी परम्परा अनुसार महंत पहलाद गिरी उसी परम्परा को निभाते हुए माता के सेवा में अपने जीवन को समर्पित है।सभी से प्राथना की ऐसे प्राचीन ओर दिव्य स्थान का दर्शन अबश्य करे और अपने जीवन के सफल बनायें।

महंत पहलाद मां हिंगलाज दुर्गा मठ सांचेत
प्राचीन बावड़ी ग्यारह सौ वर्ष पुरानी है यहां दर्शन मात्र से ही लोगो की मनोकामना पूरी होती है।

,पंडित अरुण कुमार शास्त्री सांचेत
प्राचीन बावड़ी पर महंत श्री नरहरि जीमहाराज जी द्वारा जिंदा समाधि ली गई है दर्शन म
मात्र से ही सब दुखदर्द होते है।
3,महंत कन्हैया जी महाराज मर घटिया महावीर मंदिर शाहजहानाबाद भोपाल
प्राचीन बावड़ी के बीचों बीच बना शिव मंदिर यहां पर भक्त दूर दूर से आते है और सब की मनोकामना पूरी होती है लेकिन पुरानी प्राचीन बावड़ी होने से आज जर्जर हो गई है आज तक इसकी कोई सुध लेने को नही आया।
4,ग्यारशी राम लोधी सांचेत
वताया ये प्राचीन बावड़ी बहुत पुरानी ओर प्रशिद्ध के ये संतो की तपो भूमि है यहां पर संत बास करते है यहां पर लोग रोते हुए आते है और हंसते हुए जाते है।

न्यूज़ सोर्स : Satish