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रायसेन।शहर सहित जिलेभर में 17वीं, 18वीं सदी की बावड़ियां गुमनामी का शिकार है। इनको सहेजने से ये रायसेन सिटी समेत आसपास के गांव में विलेज टूरिज्म का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती हैं। इस तरह की कई बावड़ियां रायसेन जिला मुख्यालय  के समीप कस्बे बरेली  और गैरतगंज ,बेगमगंज में हैं। जो आज भी अच्छी हालात में है, लेकिन कुछ जर्जर हो रही है जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है। रायसेन किले  कीआधे दर्जन करीब  बबड़ियां पुरातत्व विभाग के अधीन है, जिसे एएसआई ने संरक्षित कर लिया है।
इंटेक ने की बावड़ियों को सहेजने की पहल....
पुरातत्व विभाग के रायसेन किले सांची स्तूप प्रभारी संदीप मेहतो ने बताया कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट कल्चर एंड हैरिटेज (इंटेक) नाम की संस्था ने इस तरह की हैरिटेज प्रॉपर्टी के अस्तित्व को बचाए रखने के उद्देश्य से इन्हें सहेज कर, इन्हें हैरिटेज सर्किट के रूप में विकसित करने का प्रयास किया है। लेकिन अनेक बावड़ियां निजी किसानों के अधीन हैं। जिसका उपयोग किसान सिंचाई के लिए करता है।
इंटेक का कहना है कि किसान चाहे इससे सिंचाई करें, इस पर आपका हक रखे, लेकिन इसका संरक्षण का काम हमें करने दें, ।ताकि आपकी बावड़ी एक दर्शनीय स्थल बन जाए। पर्यटक इन्हें देखने आए जिससे आपकी बावड़ी के माध्यम से आपके गांव की एक पर्यटक स्थल के रूप में पहचान हो जाएगी। गौरतलब है इन ऐतिहासिक बावड़ियों मे राजा-रानी स्नान किया करते थे, जो उस जमाने के स्विमिंग पूल की तरह होते थे।

न्यूज़ सोर्स : Icn