उज्जैन में संघ प्रमुख मोहन भागवत का संबोधन
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शिक्षा और स्वास्थ्य आज के समय में ऐसा है कि सबको इसकी आवश्यकता लगती है।
भारत की शिक्षा 3 ट्रिलियन डॉलर का क्षेत्र है वो लोग माना जाता है।लेकीन विद्या भारती जिस शिक्षा की बात करती है वो इस शिक्षा को साथ लेकर भारत वर्ष के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करना है,
दुनिया भर की जानकारी ठूस ठूस कर दिमाग मे भरना शिक्षा नहीं है, भौतिक जीवन को साक्षार बनाना शिक्षा नहीं है
पहले की समय में जानकारी किसी के पास जाकर प्राप्त होती थी, उसके बाद पुस्तके आई, उसके बाद कई माध्यम बने जिससे जानकरी मिलती है सबमें साक्षय हो ये आवश्यक है। पशु पक्षियों के स्कूप कॉलेज नहीं लेकिन प्रकर्ति उनको रास्ता दिखाती है वो सिख लेते है, नए इलाके में शेर भी घूम कर जनाकारी लेता है! इसका मतलब सीखने की बुद्धि में सबमे होती है
मनुष्य की बुद्धि को कोई अटक नही मिली इसलिए वो विचार करता हूं
क्या सीखना है ये जरूरी है
सीख कर मनुष्य से भगवान व राक्षस बना जा सकता है। पशु पक्षियों के स्कूप कॉलेज नहीं
लेकिन प्रकर्ति उनको रास्ता दिखाती है वो सीख लेते है, नए इलाके में शेर भी घूम कर जानकारी लेता है। इसका मतलब सीखने की बुद्धि में सबमे होती है।मनुष्य की बुद्धि को कोई अटक नही मिली इसलिए वो विचार करता हूं ।क्या सीखना है ये जरूरी है
सीख कर मनुष्य से भगवान व राक्षस बना जा सकता है। कड़वी घुट्टी को चीनी में मिला कर देना पड़ती है।शिक्षा भी वेसे ही है जिसे सीखना है तो बच्चो के स्तर तक जाकर उनको सिखाना पड़ेगा। आचार्य छात्रों पर पुत्रवत प्रेम से पढ़ाता है। गुरु केवल पढ़ाते नहीं उनसे आपको प्रकाश मिलता है। शहर व ग्रामीणों की दुनिया एकदम अलग अलग हो गई है। वनवासी आदिवासी की अलग हो गई।
ऐसे में तीनों की शिक्षा को अलग अलग तरह से सिखाना होगा, उनकी भूमिका में, उनके स्नेह में जाकर सिखाना होगा, विद्याभारती इसी के लिए है आज से नहीं हमेशा से