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(राजकिशोर सोनी)

यूं तो रमजान का पाक महीना पूरे देश में अकीदत के साथ मनाया जा रहा है। लेकिन रायसेन में यह कुछ ज्यादा ही खास है। जी हां प्रदेश में रायसेन ही एक ऐसा नगर है जहां रमजान के दौरान तोप चलाने की अनूठी रिवायत(परम्परा) है। यहां रोजा प्रारम्भ करने और रोजा अफ्तार करने तोप चलाकर इस समय को बताया जाता है तोप चलने के साथ ही रोजा शुरू होता है और तोप चलने के बाद रोज अफ्तारी होती है। रायसेन की परंपरा रही है कि यहां हर वर्ग का त्योहारों में पूरा शहर आपसी भाईचारे के साथ मिलकर पूरी श्रद्वा से इस हिस्सा लेता है।
परंपरा के अनुसार रात के समय सहरई के लिए करीब दो घंटे प्राचीन किले की प्राचीर से नंगाडे बजाएं जाते है। रमजान के दौरान पूरा शहर आपसी भाईचारे के साथ मिलकर पूरी श्रद्वा से इस माह में बढ चढकर हिस्सा लेता है। जिससे यहां का माहौल देखते ही बनता है। मुस्लिम त्योहार कमेटी के अध्यक्ष फरहान खान ने बताया कि रमजान के दौरान सहरई एवं रोजा अफतार का समय बताने के लिए पूरे देश में सिर्फ रायसेन मुख्यालय पर ही तोप चलाई जाती है। जिसके लिए जिला प्रशासन बकायदा एक महीने के लिए तोप का लायसेंस जारी करता है। नबाबी शासन काल से चली आ रही वर्षो पुरानी इस पंरपरा में जिला प्रशासन पूरा सहयोग करता है। साथ ही रमजान के बाद इस प्राचीन तोप को कलेक्ट्रेट के मालखाने में जमा करा दिया जाता है।
वही कमेटी द्वारा रात के समय प्राचीन किले की प्राचीर से सहरई के लिए करीब दो घंटे नंगाडे बजाएं जाते है, जो रोजेदारो को जगा कर सहरई करने का संदेश देते है। प्रदेश भर में मात्र यही जिला प्रशासन तोप का लायसेंस देता है। यह परंपरा भोपाल के नबाब द्वारा शुरू कराई गई थी जो आज तक कायम है।किले की पहाडी के बीच में रखी यह तोप जब चलाती है तो आसपास के करीब एक दर्जन गांवो तक इसकी आवाज जाती है। जिसके बाद ही रोजेदार सहरई एवं रोजा अफतार करते है। मुस्लिम त्यौहार कमेटी की देखरेख में इस तोप का संचालन किया जाता है। इस तोप में महीने भर के दौरान करीब 25 से 30 किलो बारूद का इस्तेमाल किया जाता है।इबादत के इस महीने को लोग बेहद अकीदत के साथ मनाते है। वही रायसेन में आज भी रमजान के दौरान तोप चलाने की रिवायत से खुश होकर इसे बडे फक्र की बात मानते है। लोगो का कहना है कि इस तरह आजाद भारत में अब तोप चलाने की कही और परंपरा नही बची है। जिस वजह से यह स्थान देश भर में खास कहलाता है।

न्यूज़ सोर्स : Icn