पूरी दुनिया कविगुरु रविन्द्रनाथ टैगौर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। 76 साल पहले 7 अगस्त 1941 को उन्होंने कोलकाता में अंतिम सांस ली थी। गुरुदेव बहुआयामी प्रतिभाशाली शख्सियत थे। वे कवि, साहित्यकार, दार्शनिक, नाटककार, संगीतकार और चित्रकार थे। विश्वविख्यात महाकाव्य गीतांजलि की रचना के लिये उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले वे अकेले भारतीय हैं। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले सेभी उनका नाता रहा है। यहां पर वे अपनी पत्नी के इलाज के लिए उन्हें लेकर पहुंचे थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर पत्रकार और समाजसेवियों ने यहां पहुंचकर श्रधांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया।

अपनी पत्नी के वियोग में की थी 'फांकी' की रचना

गुरुदेव कि इस पुण्यतिथि पर हम आपको उनकी पत्नी प्रेम और विरह में पिरोयी हुई उन यादों से मिलवाना चाहते हैं, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी के वियोग में जिया था। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने पत्नी के वियोग में फांकी कविता लिखी थी। उनकी मशहूर कविता 'फांकी ' का कनेगढ़ कनेक्शन छत्तीसगढ़ के पेंड्रा और बिलासपुर से है। यहां गुरुदेव ने अपनी पत्नी की वियोग में इस मार्मिक कविता की रचना की थी । बिलासपुर रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में गुजारे 5 से 6 घंटे साल 1902 में कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर अपनी पत्नी मृणालिनी देवी जिन्हें वे प्यार से बीनू भी बोला करते थे, उन्हें लेकर बिलासपुर पहुंचे थे। गुरुदेव को उन दिनों बिलासपुर जिले में स्थित पेंड्रा रोड स्टेशन जाना था। जो रेला पेण्ड्रा मरवाही जिला हो गया है, इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे। चंद घंटों के बाद बिलासपुर से गाड़ी बदलकर वो पेंड्रा रोड चल दिए। इस बीच वो तकरीबन 5 से 6 घंटे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे। टैगोर की पत्नी बीनू टीबी की बीमारी से ग्रसित थी और वे उनका इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम अस्पताल ले जा रहे थे। उन दिनों सेनिटोरियम अस्पताल टीबी के इलाज और विशेष आबोहवा के लिए देशभर में मशहूर था।

गुरुदेव ने पत्नी से बोला झूठ

बिलासपुर के प्रतीक्षाघर में बैठी टैगोरजी की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली महिला पर पड़ी। टैगोर जी की पत्नी बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया, पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है और तुम यह काम क्यों कर रही हो ? महिला ने अपना नाम रुक्मिणी बताया। रुक्मिणी ने कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है, इसलिए वह मजदूरी कर पैसा जोड़ रही है। यह पूछने पर कि कितने पैसे में काम हो जाएगा, रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी। फिर, टैगोर जी की पत्नी ने गुरुदेव से उसे 20 रुपये देने का आग्रह किया। गुरुदेव ने कहा कि ठीक है, मैं इसे पैसे दे दूंगा, लेकिन सौ रुपये के खुल्ले करवाने के लिए उसे उसके साथ बाहर चलना होगा। रुक्मिणी को गुरुदेव बाहर ले गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो, मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या ? इतने में रुक्मिणी वहां से चली गई। जब गुरुदेव दोबारा प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा देने का झूठ बोल दिया।

बिलासपुर स्टेशन पर लिखी कविता

इसके बाद पति-पत्नी पेंड्रारोड के सेनेटोरियम अस्पताल पहुंचे, जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला। लंबे इलाज के बाद भी बीनू बच नहीं पाईं। इस तरह गुरुदेव को पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने का दुख सताने लगा। गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की। अकेले गुरुदेव जब दोबारा कोलकाता लौटने के क्रम में फिर से बिलासपुर स्टेशन लौटे तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे, लेकिन रुक्मिणी उन्हें कहीं नहीं मिली। यहीं से एक महान कवि के हृदय में 'फांकी' कविता जन्म लेती है, जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर ही लौटते वक्त लिखा था।

'फांकी' का मतलब

फांकी एक बंग्ला शब्द है, जिसका अर्थ 'छलना' होता है। गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता फांकी ने जन्म लिया। दरअसल एक कवि के अंदर जितनी अधिक स्वीकारोक्ति की भावना होती है, वो उतनी ही महान और स्थाई रचना समाज को देता है। गुरुदेव की फांकी इस अर्थ में एक महान रचना है, जिसे बिलासपुर स्टेशन के मुख्य द्वार के पास खूबसूरती से उकेरा गया है। आज भी देश गुरुदेव को याद कर रहा है।