(मूलचन्द मेधोनिया भोपाल (संत रविदास विशिष्ट सेवा सम्मान प्राप्त) 
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संत रविदास जी का जन्म ऐसे
 समय में हुआ था। जब सामाजिक भेद-भाव, असमानता और छुआछूत के आधार पर मानव - मानव में खाई थी। ऐसे समय में महान संत शिरोमणि सतगुरु रविदास एक समाज सुधारक, जन जागरण और अपनी वाणी, भजन, गीत के साथ ही सरल बोलचाल की भाषा में सामाजिक सद्भाव बनाने के लिए अवतरण लिया था। जिनका जन्म दिन माघी पूणिमा को हुआ था। जन्म तिथि को लेकर एक दोहा प्रचलित है - चौदह सौ तेंतीस की, माघ सुदी पन्द्रस।
दुखियों के कल्याण हित, प्रगट भये रैदास।। इस प्रकार उनका जन्म 14 33 ईस्वी में काशी के पास मन्डूरगंढ नामक स्थान पर हुआ था। पिता का नाम राऊजी माता जी का नाम कर्मादेवी था। परिवारिक पेशा लोग उन्हें मोची का काम करना बताते हैं। जो कि गलत है। मेहनत मसकत करने वाले परिजन थे। सादा जीवन आदर्श परिवार के रूप में था। संत रविदास पूर्व से ही ज्ञान बान और होनहार थे। जन्म से ही भारत के प्रकांड विद्वानों से ज्ञान अर्जित कर स्वयं अध्ययन और शोध परक व तथ्यों से महाज्ञानी हुए। जो आगे चलकर संत समाज में शिरोमणि सतगुरु रविदास के नाम से जाने गये।
संत रविदास ने बाल अवस्था से युवा अवस्था तक गुरु परम्परा नुसार अपार ज्ञान की प्राप्ति कर ली थी। उन्होंने बालकाल से अंत तक समाजोत्थन, पद यात्राएं कर जन मानस में सौहार्द, प्रेम, भाईचारा का जीवन भर जनजागृति में लगे रहे। वह गृहस्थ संत थे, उनकी पत्नी का नाम लोनादेवी और पुत्र का नाम विजयदास था। वह भारत के जन मानस में एकता और मानव एक समान है। यहां कोई नीच न कोई ऊंच है के संदेश देकर अपनी कलम और रचना - पद वाणी से महान संस्कृति और सामाजिक उत्थान किया है। देश भ्रमण कर अनेक लोगों को सत्संग, भजन और प्रवचन दिये। जिससे गरीब व अमीर उनके भाव आदर्शों से प्रभावित होकर राजपाट तक त्याग कर उनके शिष्य बने। तथा देश के कोने-कोने में उनके प्रवचन हाल /धर्मशाला बनवाई। जिसमें वह लोगों को प्रवचन दिया करते थे। उन्होंने बिल्कुल भी मोची या चर्मकारी का काम नही किया है। कुछ नासमझ लेखकों और कवियों ने अपने को शीर्ष स्थापित करने के लिए जूता बनाने काम में जोड़ा गया है। यदि वह उस कार्य को करते तो देश भ्रमण कर सामाजिक जन जागरण का काम नहीं कर पाते। वह तो भारत भूमि के संत शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित है। उन्हें मोची का काम बताना बेईमानी और ओझी मानसिकता है।
संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी एक कवि थे। वह निर्गुण उपासना के प्रखर संत के रूप में सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया। तथा भारतीय समाज में व्याप्त विघटन, जातिगत संकीर्णता, ऊंच नीच, घृणा. वैमनस्य के विरुद्ध उन्होंने अपनी कालमयी विचारधारा से सामाजिक क्रांति पैदा की व सम्पूर्ण समाज, धर्म, सम्प्रदाय को समानता के सूत्रधार के आधार पर अमन व शांति का संदेश दिया। उन्होंने ऊंची जाति के वर्णाभिमानी कट्टरपंथी को फटकारते हुए कहा कि -
" रविदास जन्म के कारणे होत न कोई नींच।
नर को नींच करी डारि है औछे कर्म को नींच।।" 
और साफ तौर पर समाज को जगाते हुए कहा कि -
" रविदास ब्राम्हण मत पूजिये जो होबे गुणहीन।
पूजिये चरण चण्डाल के जो होबे गुण प्रवीन।।"

न्यूज़ सोर्स : Bhopal